‘फैसला’ कहानी का मूल भाव / उद्देश्य / सन्देश या प्रतिपाद्य

'फैसला' कहानी का मूल भाव / उद्देश्य / सन्देश या प्रतिपाद्य

मैत्रेयी पुष्पा द्वारा रचित कहानी ‘फैसला’ पुरुष प्रधान समाज में नारी उत्पीड़न की समस्या पर लिखी गई कहानी है | प्रस्तुत कहानी में दर्शाया गया है कि नारी-उत्पीड़न की दास्तां इतनी प्राचीन हो गई है कि पुरुष प्रधान समाज ने उसे अपना अधिकार तथा नारी ने उसे अपनी नियति मान लिया है | ‘फैसला’ कहानी का मूल भाव नारी उत्पीड़न के इस भयावह दृश्य को चित्रित करना ही है | कहानी में अधिकांश नारी पात्र अपने ऊपर हो रहे अत्याचारों को चुपचाप सहन कर रहे हैं | उनमें से अधिकांश नारियां ऐसी हैं जो अपने ऊपर हो रहे अत्याचारों के विरुद्ध आवाज उठाना ही नहीं चाहती | अगर हरदेई जैसी किसी नारी की आवाज न्याय के लिए उठती भी है तो उसे दबा दिया जाता है | तब वह है या तो चुपचाप मुर्दों की तरह जीवन जीने लगती है या हरदेई की भांति आत्महत्या कर लेती है |

स्वतंत्रता के पश्चात भले ही संविधान के द्वारा नारी को समानता प्रदान की गई हो, उसे राजनीतिक अधिकार प्रदान किए गए हों लेकिन वे प्रावधान केवल कागजों तक सीमित रह जाते हैं | प्रस्तुत कहानी में बसुमती ग्राम प्रधान चुनी जाती है लेकिन वह केवल नाम-मात्र की ग्राम-प्रधान है उसके सारे अधिकारों तथा शक्तियों का प्रयोग उसका पति रनवीर करता है | जहां उसके पतिदेव कहते हैं वह हस्ताक्षर कर देती है | हालांकि कहानी में यह संकेत भी मिलता है कि वसुमति अपने पति रनबीर से अधिक शिक्षित है | एक स्थान पर ईसुरिया कहती है — ““साँची कहना, तू ग्यारह किलास पढ़ी है न? और रनवीर नौ फेल? बताओ कौन हुसियार हुआ?”

वसुमति एक उच्च घराने की स्त्री है लेकिन उसकी स्थिति दयनीय है |गांव की अन्य नारियों की स्थिति उससे भी बदतर है | इस प्रकार इस कहानी में दर्शाया गया है कि हर क्षेत्र और हर वर्ग की नारी की स्थिति ऐसी ही है | प्रायः उच्च घराने में जन्म लेने और अच्छी शिक्षा प्राप्त कर लेने से मनुष्य की स्थिति में सुधार आ जाता है लेकिन औरत के मामले में यह भी सत्य नहीं है | जयशंकर प्रसाद जी की कहानियां और नाटक राजघरानों पर आधारित है परंतु वहां भी नारी की स्थिति ऐसी ही है | ‘ध्रुवस्वामिनी’ नाटक में ध्रुवस्वामिनी केवल भोग की वस्तु बनकर रह गई है | उसकी भावनाओं का कहीं कोई महत्व नहीं | प्रसाद के साहित्य में नारियों को अपने कुल-परिवार की मर्यादा के लिए अपने अधिकारों का गला घोटते दिखाया गया है | इस प्रकार उनके साहित्य ने परंपरागत रूढ़ियों को समाज में आरोपित करने वाले तत्वों को संजीवनी प्रदान की है | अज्ञेय की कहानी ‘गैंग्रीन’ में मालती एक डॉक्टर की पत्नी होने के बावजूद दयनीय अवस्था में जीवन जी रही है |

‘फैसला’ कहानी का मूल भाव नारी-उत्पीड़न का यथार्थ वर्णन करना व नारी मन में पनप रही विद्रोह की भावना को अभिव्यक्ति प्रदान करना भी है | ईसुरिया का पात्र कहानी में नारी सशक्तिकरण की आवाज बनकर उभरा है | वह गांव में स्वच्छंद विचरण करती है और बड़ी निर्भीकता से समाज के गली-सड़ी परंपराओं पर अंगुली उठाती है | संभवत: वह इंदिरा गांधी से प्रेरित है और उनके प्रधानमंत्री बनने को वह नारी समानता का परिचायक मानती है |

बसुमती के ग्राम-प्रधान चुने जाने पर वह प्रसन्नता से उछल पड़ती है और कहती है — “अब दिन गए कि जनी गूंगी-बहरी छिरिया-बकरियाँ की नाई हँकती रहे | बरोबरी का ज़माना ठहरा | पिरधान बन गई न बसुमती |”

ईसुरिया समय से आगे की बात करती है | घर की चारदीवारी में बंद रहकर चक्की पीसना, रोटी थेपना जैसे कार्यों को वह केवल महिलाओं का कर्तव्य नहीं मानती | उसके अनुसार पुरुष की भांति महिला भी हर प्रकार के कार्य करने में सक्षम है | इसके विपरीत वह मानती है कि जो कार्य महिलाएं करती हैं पुरुषों को भी वे कार्य करने चाहिए | एक स्थान पर वह कहती है —“सुन ले! सुनाने के लिए ही कह रहे हैं हम | रनवीर एक दिन चाखी पीसेगा, रोटी थापेगा और हमारी बसुमती कागद लिखेगी, हुकुम चलाएगी, राज करेगी |”

हरदेई झूठी मर्यादा के बंधनों में बँधकर आत्महत्या करने पर मजबूर हो जाती है | उस जैसी अन्य नारियां जीवित होते हुए भी मुर्दों से बदतर हैं | दूसरी तरफ ईसुरिया भले ही सामाजिक सम्मान अर्जित न कर सकी हो परन्तु सामाजिक बंधनों से मुक्त होकर स्वतंत्र निर्णय लेने व अपने ढंग से जीवन-यापन करने के कारण अपने जीवित होने का प्रमाण देती है |

ऐसा लगता है जैसे वसुमती ईसुरिया और हरदेई दोनों पात्रों को एक साथ जी रही है | वह ईसुरिया की भाँति रणवीर का विरोध करना चाहती है लेकिन हरदेई की भांति मर्यादा के बंधनों में बंधकर रह जाती है | ऐसा लगता है जैसे कहानी के अंत तक आते-आते बसुमती भी अपने अंदर की हरदेई को मारकर अपने अंदर की ईसुरिया को जगाती है | ब्लाक-प्रमुख के चुनाव में वह अपने पति के प्रतिद्वंद्वी को वोट डालती है | फलत: रनबीर एक वोट से चुनाव हार जाता है | रनबीर का एक वोट से हार जाना इस बात का परिचायक है कि किसी गलत कार्य के विरुद्ध एक अकेले व्यक्ति के प्रयास भी मायने रखते हैं | दूसरा, प्रत्येक नारी को अपनी स्वतंत्रता अपने उत्थान व उद्धार के लिए स्वयं प्रयत्न करने होंगे | तीसरा, कहानी को राजनीतिक पृष्ठभूमि प्रदान करने का एक उद्देश्य यह भी हो सकता है कि नारी को अपने राजनीतिक अधिकारों का प्रयोग सावधानीपूर्वक करना चाहिए | हो सके तो स्वयं राजनीति के क्षेत्र में आगे आकर नारी स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करना चाहिए | क्योंकि राजनीतिक व्यवस्था ही उन कानूनों और नीतियों का निर्माण करती है जो हमारे भविष्य का निर्धारण करती हैं |

इस प्रकार ‘फैसला’ कहानी का मूल भाव नारी को मनुष्य के रूप में देखे जाने की वकालत करना है और साथ ही इस तथ्य की अभिव्यंजना है कि इसके लिए स्वयं नारी को प्रयत्नशील होना पड़ेगा |

यह भी देखें

फैसला ( मैत्रेयी पुष्पा )

‘फैसला’ कहानी की तात्विक समीक्षा ( ‘Faisla’ Kahani Ki Tatvik Samiksha )

‘ईदगाह’ ( मुंशी प्रेमचंद ) कहानी की समीक्षा [ ‘Idgah’ ( Munshi Premchand ) Kahani Ki Samiksha ]

‘पुरस्कार’ ( जयशंकर प्रसाद ) कहानी की तात्विक समीक्षा [ ‘Puraskar’ (Jaishankar Prasad ) Kahani Ki Tatvik Samiksha ]

ठेस ( फणीश्वर नाथ रेणु )

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